32 साल से पूर्वांचल के मासूमों पर मौत बनकर बरस रही बीमारी एन्सेफ्लाईटिस के खिलाफ मुहिम अब कामयाब होने लगी है। सरकार ने जापानीज एन्सेफ्लाईटिस के टीके की दूसरी खुराक लगाने के कार्यक्रम को मंजूरी दे दी है। पिछले दिनों इस कार्यक्रम की घोषणा गोरखपुर के सीएम्ओ ने की। गौरतलब है कि पिछले कई सालों से एन्सेफ्लाईटिस उन्मूलन अभियान के चीफ कम्पेनेर डाक्टर आर.एन.सिंह टीके की दूसरी खुराक लगवाने की मांग कर रहे थे। डाक्टर सिंह के मुताबिक टीके की कम से कम दो खुराक ही कारगर होती है। ख़ुद टीका बनानने वाली कम्पनी ने भी टीके के रेपर पर इसकी कम से कम तीन खुराक लगवाने की ताकीद कर रखी है। लेकिन ना जाने क्यों सरकार इस टीके की एक खुराक को ही पर्याप्त मानकर चल रही थी। सरकार की इस अनदेखी के चलते पूर्वांचल में ऐसे बच्चे भी एन्सेफ्लाईटिस के शिकार होते रहे जिन्हें टीका लगाया जा चुका था। डाक्टर आर.एन.सिंह कहते हैं कि सरकार ने टीके की दो खुराक भी दिलवा दी होती तो इस तरह आधे-अधूरे नतीजे नहीं आते।
इस बीच बाल दिवस की पूर्व संध्या पर गोरखपुर में सूरजकुंड सरोवर पर सेकड़ों लोगों ने एन्सेफ्लाईटिस से इस साल गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में मरे बच्चों की याद में दीप जले। लोगों ने दीप से नीप (नेशनल एन्सेफ्लाईटिस एरेदिकेशन प्रोग्राम) लिखकर इसे लागू करने की मांग की। इस कार्यक्रम की अगुवाई एन्सेफ्लाईटिस उन्मूलन अभियान की संयोजक डाक्टर वीणा और श्रीमती स्नेह ने की। कार्यक्रम में संरछ्क के तौर पर मौजूद डाक्टर आर.एन.सिंह ने कहा कि इन दीपों की टिमटिमाती 'लो' ठीक उसी तरह है जैसे एन्सेफ्लाईटिस से बीमार बिस्तर पर पड़े किसी मासूम की सांसें जिंदगी और मौत के बीच अटकीं होती हैं। हमें इस 'लो' के बुझने से पहले सरकार को नीप लागू करने के लिए हर हाल में मजबूर करने की शपथ लेनी है ताकि मासूमों का जीवन टूटती सांसों का मोहताज़ न रहे।
छपाक संवाददाता, गोरखपुर, १३ नवम्बर २००९
इस बीच बाल दिवस की पूर्व संध्या पर गोरखपुर में सूरजकुंड सरोवर पर सेकड़ों लोगों ने एन्सेफ्लाईटिस से इस साल गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में मरे बच्चों की याद में दीप जले। लोगों ने दीप से नीप (नेशनल एन्सेफ्लाईटिस एरेदिकेशन प्रोग्राम) लिखकर इसे लागू करने की मांग की। इस कार्यक्रम की अगुवाई एन्सेफ्लाईटिस उन्मूलन अभियान की संयोजक डाक्टर वीणा और श्रीमती स्नेह ने की। कार्यक्रम में संरछ्क के तौर पर मौजूद डाक्टर आर.एन.सिंह ने कहा कि इन दीपों की टिमटिमाती 'लो' ठीक उसी तरह है जैसे एन्सेफ्लाईटिस से बीमार बिस्तर पर पड़े किसी मासूम की सांसें जिंदगी और मौत के बीच अटकीं होती हैं। हमें इस 'लो' के बुझने से पहले सरकार को नीप लागू करने के लिए हर हाल में मजबूर करने की शपथ लेनी है ताकि मासूमों का जीवन टूटती सांसों का मोहताज़ न रहे।
छपाक संवाददाता, गोरखपुर, १३ नवम्बर २००९
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