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मंगलवार, 10 नवंबर 2009

चाचा नेहरू सा दिल चाहिए

गोरखपुर में इस बार चाचा नेहरू का जन्मदिन एन्सेफ्लाईटिस से मारे गये बच्चों को श्रधान्जली दिवस के रूप में मनाया जाएगा। यहाँ मरे की जगह 'मारे गये' शब्द का उल्लेख सोच समझ कर इसलिए किया है क्योंकि इन बच्चों को बचाया जा सकता था। जैसा कि हम सब जानते हैं कि चाचा नेहरू को बच्चों से बहुत प्यार था। केवल भारत के नहीं दुनिया भर के बच्चे उनके चहेते थे। आजादी के दो साल बाद टोकियो शहर के बच्चों ने चाचा नेहरू को चिठियाँ लिखकर भारतीय हाथी देखने की इच्छा जाहिर की। सितम्बर १९४९ में नेहरू जी ने उन्हें तोहफे के रूप में एक हाथी भेज दिया। उस हाथी का नाम 'इंदिरा' रखा गया था. २४ सितम्बर १९४९ को जब ये हाथी टोकियो के चिडियाघर पहुँची तो उसके स्वागत के लिए हजारों बच्चे मौजूद थे। बच्चों की खुशी देखते ही बनती थी। हाथी भेजने के बाद ३ दिसम्बर १९४९ को पंडित नेहरू ने जापानी बच्चों के नाम एक पत्र लिखा। उस पत्र में उन्होंने जापान के बच्चों को भारत और दुनिया के बारे में वैसे ही बातें बताईं जैसी वे अक्सर अपनी प्यारी बेटी इंदिरा को बताया करते थे। जाहिर है पंडित नेहरू का दिल इतना बड़ा था कि उसमें दुनिया भर के बच्चे समां सकते थे। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के नेहरू चिकित्सालय में लगी नेहरू जी की तस्वीर देखकर जाने क्यों ख्याल आता है कि काश! नेहरू जी होते तो यहाँ इन मासूमों को जान ना गंवानी पड़ती। १४ नवम्बर को नेहरू जी का जन्मदिन पूरे देश में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस बार गोरखपुर में इसे बच्चे बचाव दिवस के रूप में मनाया जाएगा। एन्सेफ्लाईटिस उन्मूलन अभियान की समन्वयक डॉक्टर वीणा सिंह ने बताया कि बाल दिवस की पूर्व संध्या पर पवित्र सूरजकुंड सरोवर में इस साल एन्सेफ्लाईटिस से मरे हर बच्चे की याद में एक दीया जलाया जाएगा। चीफ कम्पेनर आर.एन.सिंह दीये की टिमटिमाहट को एन्सेफ्लाईटिस के बिस्तर पर पड़े बच्चों की डगमगाती जिन्दगी से जोड़ते हैं। डॉक्टर सिंह के मुताबिक इस दीपांजली के जरिये नेहरू जी की पवित्र आत्मा को पुकारा जाएगा। अब शायद वही अपने वारिसों की केन्द्र सरकार को बच्चों के प्रति संवेदनशीलता का पाठ पढा सके।

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