बकवास, बकवास और महज बकवास है ये सब। आम आदमी के जीवन की तकलीफ़ो में इससे कोई कमी नहीं आने वाली। फ़िर भी पता नहीं कैसे हैं हम? जो अपने प्रतिनिधियों को एक बार संसद में भेजकर भूल ही जाते हैं। रोज़ शाम थैला लेकर बाजार पहुँचते ही आसमान छूती महंगाई कमर कमजोर कर देती है लेकिन याद नहीं आता कि हमारे प्रतिनिधियों को इस मुद्दे पर संसद में सरकार का जीना हराम कर देना चाहिए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान इस मामले में फ़िर भी जागरूक हैं। संसद सत्र शुरू होने के पहले ही दिन अपने नेता अजित सिंह, मुलायम सिंह और इलाके के सारे सांसदों को मजबूर कर दिया संसद में हंगामा मचाने को। दिल्ली की सडकों पर किसानो ने कमान ख़ुद संभाली। दो दिन संसद ठप्प रही और तीसरे दिन सरकार ने उनकी मांग मान ली। लोकतंत्र में दरअसल ऐसे निकला जाता है अपनी समस्याओं का हल। गन्ना किसान पिछले कई महीनो से लड़ रहे थे। उनके नेताओं को मालूम है कि उनकी वाली नहीं हुई तो इलाके में मुंह दिखाना मुश्किल हो जाएगा।
लेकिन महंगाई सहित कई समस्याओं से परेशान आम आदमी की तो कोई जमात है ही नहीं ना। बस अपने-अपने घरों में बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ बढती महंगाई पर आंसू बहा सकते हैं। १०१ रुपए किलो अरहर की दाल, ३० रूपया किलो प्याज और ३० रुपये किलो मसूरी चावल हो गया । हर चीज के दाम आसमान छू रहे हैं। निम्न मध्य वेर्गीय और गरीब आदमी की खुराक कम हो गई है। मंदी के नाम पर देश भर में लाखों नये बेरोजगार पैदा हो गये हैं जिन्हें मंदी ख़त्म होने के बाद भी नौकरी नहीं मिली है। कहाँ जायेंगे ये सब और इनके बाल-बच्चे । किसी को परवाह है! संसद में लिब्रहम रिपोर्ट पेश होते ही लखनऊ में बेशर्म कल्याण सिंह कुरता झाड़कर कैमरों के सामने खड़े हो गये। लगे चिंघाड़ने, '' मुझे मस्जिद गिरने का कोई अफ़सोस नहीं।" याद कीजिये कुछ महीने पहले ही मुलायम से दोस्ती करके यही कल्याण मस्जिद मामले में सफाई देते घूम रहे थे। अभी ना घर के हैं ना घाट के। सो बीजेपी की तरफ़ आशा भरा एक पैगाम पहुँचाने का इतना बेहतर मौका भला क्यों गंवाते ।
ये रिपोर्ट इंडियन एक्सप्रेस में लीक कैसे हुई इसको भी मुद्दा बनाया गया। गृहमंत्री पी.चिदम्बरम कहते हैं उनके मंत्रालय ने ये काम नहीं किया। जस्टिस लिब्रहान कहते हैं कि वे इतना नीच काम कर ही नहीं सकते। अरे छोड़ दीजिये साहब! पता नहीं ये काम नीच है या उंच। और हम अगर जान भी जायें कि किन महाशय ने ये कारनामा कर दिखाया तो भला क्या कर लेंगे और सबसे बढ़कर कि आख़िर हम कुछ क्यों करें। रिपोर्ट अखबार में छपे या संसद में रखी जाए हमारी बला से। क्या फर्क पड़ने वाला है। ये नेता और मीडियावाले आख़िर फालतू बातों पर इतना क्यों चिल्लाते हैं। कहीं इसके पीछे भी कोई सोची-समझी चाल तो नहीं। ठीक समझा आपने....ये सब मिलकर जनता की मौलिक समस्याओं को दबाने की चाल चल रहे हैं.यकीन मानिये इनकी चली तो संसद में एक दिन भी जनता से जुड़े सार्थक मुद्दों पर कोई बात नहीं होगी। लोकसभा टीवी के बायोस्कोप पर हमे कभी चीन की रार, कभी पाकिस्तान को ललकार, कभी सिख दंगों की रिपोर्ट, कभी गुजरात दंगों की तो कभी अयोध्या ध्वंश की रिपोर्ट्स देखने को मिलेंगी। कभी प्रधानमंत्री मनमोहन , राष्ट्रपति ओबामा के मेहमान बनकर दबी जुबान चीन की शिकायत से हमे खुश करेंगे तो कभी राहुल सिर पर गारे-माटी की कराही उठाकर जता देंगे कि भावी प्रधानमंत्री बनने के लिए वे किस हद तक मेहनत कर सकते हैं। लेकिन उनमें से कोई लाख नाटक करे, कुछ भी कहे, देश के आम आदमी के लिए असल में कुछ नहीं करने वाला। दरअसल, आम आदमी उनका एजंडा ही नहीं है।