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शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

तो क्या सरकार झूठ बोलती है?




२३ जुलाई २००९ को उत्तर प्रदेश के चिकित्सा मंत्री अनंत मिश्रा एक अन्य मंत्री लालजी वर्मा और प्रमुख सचिव हरभजसिंह के साथ गोरखपुर पहुंचे। वहां मीडिया के सवालों का जबाब देते हुए इन मंत्रियों ने सीना चौड़ा करके बड़े शान से कहा था कि सरकार की कोशिशों के चलते उत्तर प्रदेश से जापानी एन्सेफ्लाईटिस का सफाया हो गया है। लेकिन अब बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज से आई एक रिपोर्ट ने इन मंत्रियों को झूठा साबित कर दिया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस साल अभी तक आए एन्सेफ्लाईटिस के २२७० मरीजों में से २८७ में जापानी एन्सेफलाईटिस की पुष्टि हुई है। गौरतलब है कि मेडिकल कॉलेज में अब तक ४१६ बच्चे जापानी और एक्यूट एन्सेफ्लाईटिस के चलते जान गवां चुके हैं।


एन्सेफ्लाईटिस उन्मूलन अभियान के चीफ कम्पेनर डॉक्टर आर.एन.सिंह ने इस पूरे मामले को अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। डॉक्टर सिंह के मुताबिक सरकार ने अगर टीकाकरण में ईमानदारी बरती होती तो वाकई अभी तक जापानी एन्सेफलाईटिस का नामोनिशान मिट चुका होता। डॉक्टर सिंह शुरू से कहते आए हैं कि जापानी एन्सेफ्लाईटिस के टीके की कम से कम दो खुराक दी जाए तभी इसका सार्थक नतीजा मिल पायेगा। डॉक्टर सिंह आश्चर्य जताते हुए कहते हैं कि बार-बार चेताने के बावजूद सरकार ने टीकों की सिर्फ़ एक खुराक लगवाई। नतीजतन इतनी मुश्किल से शुरू हुआ टीकाकरण अभियान अपना मकसद पूरा नही कर सका। डॉक्टर सिंह के मुताबिक सरकार को तत्काल एन्सेफ्लाईटिस को नोटीफाईबल बीमारी घोषित करके एरिअल फोगिंग और सूअरबाड़ों को आबादी से दूर करने जैसे प्रभावी कदम उठाने चाहियें। इससे निश्चित ही जापानी एन्सेफ्लाईटिस पर काबू पाया जा सकता है। डॉक्टर सिंह के मुताबिक एस.ऐ १४-१४- २ नामक इस टीके की दूसरी खुराक न लगे तो पहली खुराक की प्रतिरोधक छमता सिर्फ़ ३३ फीसदी रह जाती है।


वैसे पूर्वांचल में एन्सेफलाईटिस के उन्मूलन को लेकर राज्य सरकार का रवैया पहले भी बेहद अफसोसजनक रहा है। सत्ता में आते ही माया सरकार ने एन्सेफ्लाईटिस से मरने वालों के परिज़नों के लिए २५ हज़ार और विकलांग होने वालों के लिए ५० हज़ार रुपयों के मुआवजे पर रोक लगा दी। ये मुआवजा पिछली मुलायम सरकार ने शुरू किया था। पिछली सरकार के निर्देशों और योजनाओं को ग़लत ठहराने के होड़ में माया सरकार को एन्सेफलाईटिस से प्रभावित गरीबोंकी स्थिति का जरा भी एहसास नहीं रहा। हर साल की तरह इस साल भी एन्सेफ्लाईटिस ने गोरखपुर और आसपास के जिलों में मौत बरपा रखी है लेकिन मुख्यमंत्री मायावती ने आज तक इस महत्वपूर्ण विषय पर एक शब्द नहीं बोला। डॉक्टर सिंह के मुताबिक समझ नहीं आता कि सूबे की मुख्यमंत्री इतने बड़े मुद्दे पर खामोशी कैसे अख्तियार कर सकती हैं। डॉक्टर सिंह ने गरीबों-दलितों के बीच घूमकर मिशन २०१२ कामयाब बनाने का मंसूबा संजोये राहुल गाँधी की कार्यशैली पर भी सवाल उठाया है। डॉक्टर सिंह के मुताबिक राहुल गाँधी और केन्द्र सरकार ने २००५ की महामारी के तुंरत बाद तो संवेदनशीलता दिखाई लेकिन लंबे समय से चुप्पी साधे बैठे हैं। केन्द्र सरकार अगर संवेदनशील होती तो एन्सेफ्लाईटिस के समूल नाश के लिए तत्काल एक रास्ट्रीय कार्यक्रम 'नीप' या किसी और नाम से लागू कर देती। डॉक्टर सिंह बारी-बारी सपा-भाजपा-बसपा और कांग्रेस सबकी पोल खोलते हैं। उनके शब्दों में,'साफ हो चुका कि किसी पार्टी या सरकार के असली एजेंडे में गरीब बच्चे और एन्सेफ्लाईटिस उन्मूलन नहीं है। इसलिए अब हम 'इस देश के वासी' ख़ुद एन्सेफलाईटिस उन्मूलन का बीडा उठा रहे हैं।' डॉक्टर सिंह ने गोरखपुर मंडल के तीन जिलों के तीन गावों को चुन कर वहां नीप के सभी सूत्रों को लागू करने का एलान किया है। इन गावों को नीप ग्राम का नाम दिया गया है। कुशीनगर और गोरखपुर की सीमा पर स्थित गांव होलिया सबसे पहले चिन्हित किया गया है।

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