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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009

एम.सी.आई आग से ना खेले

  
फोटो: मारकंडे मणि त्रिपाठी   
मेरे शहर गोरखपुर को टी.वी चैनलों ने आजकल रामभरोसे बताना शुरू कर दिया है. वाकई! हालात ही ऐसे हैं. ३२ सालों में जो एन्सेफलाईटिस हजारों बच्चों की जान ले चुकी है. इस साल अब तक ३०२ बच्चे उसकी भेंट चढ़ चुके. सबको मालूम है कि गोरखपुर मेडिकल कॉलेज ही वो जगह है जहाँ पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और नेपाल के हजारों एन्सेफलाईटिस पीडितों का सबसे सस्ता इलाज़ होता है. दूसरी बिमारियों के लिए भी ये जगह गरीबों की उम्मीदों का अकेला सहारा है. लेकिन गाजियाबाद और नॉएडा जैसे शहरों में कई नाकाबिल निजी मेडिकल कालेजों को भी मान्यता देने वाली एम.सी.आई जब-तब गोरखपुर मेडिकल कॉलेज की मान्यता पर सवाल उठाती रहती है. यहाँ की स्नातकोत्तर मान्यता वो पहले ही रद्द कर चुकी है. हाल में एम.सी.आई ने मान्यता रद्द करने की धमकी फिर दी है. एम.सी.आई को अगर क्वालिटी एजूकेशन की इतनी ही परवाह है तो वो मानकों की सख्ती निजी मेडिकल कालेजों में क्यों नहीं करती?
यहाँ उत्त्तर प्रदेश सरकार के लिए भी एक सवाल है कि जब एम.सी.आई एक नहीं कई बार मानकों का सवाल उठा चुकी है तो फिर मानकों का अनुपालन क्यों नहीं कराया जाता. क्या पूर्वांचल के गरीबों के इलाज की सबसे मुफीद जगह को बचाने के लिए सरकार के पास कुछ करोड भी नहीं हैं? जो भी हो ये तय है की अगर पूर्वांचल के इस संस्थान पर संकट आया तो पूर्वांचल के लोग इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे.  एन्सेफलाईटिस उन्मूलन की मांग को लेकर लोग पहले ही आंदोलनरत हैं. इस साल सरकार ने एन्सेफलाईटिस पीडितों की दवाओं के लिए मेडिकल कॉलेज को २ करोड रुपये दिए थे जो ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुए. मेडिकल कॉलेज में एन्सेफलाईटिस पीडितों का इलाज मुश्किल में पड़ा हुआ है. मान्यता का नया संकट कहीं चिकित्सा विद्यार्थियों  को विचलित ना कर दे. अगर ऐसा हुआ तो इलाज और मुश्किल हो जायेगा. एन्सेफलईटिस उन्मूलन अभियान चला रहे डॉक्टर आर.एन.सिंह कहते हैं, 'उनका आन्दोलन इलाज से ज्यादा समस्या के स्थाई समाधान पर जोर देता है'. लेकिन मान्यता का सवाल और इलाज के लिए धन की कमी, ज़ाहिर है! उनके लिए भी कुछ नये मोर्चे खोल रही है.

1 टिप्पणी:

  1. स्वागत है आपका, निरंतर सक्रिय लेखन से हिन्दी ब्लॉग्गिंग को समृद्ध करें
    धन्यवाद!

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