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शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

गाँधी बेमिसाल हैं


इतिहास के जिस कालखंड में गाँधी हुए वो पूरी दुनिया में मानवता की बड़ी त्रासदियों के लिए याद किया जाता है. हिटलर उसी दौर में यहूदियों को उनके बच्चों समेत गैस चेम्बरों में भिजवा रहा था तो मित्र राष्ट्रों ने शक्ति संतुलन के लिए पूरी दुनिया को विश्व युद्घ के हवाले कर दिया था. हेरोशिमा और नागासाकी पर उसी दौर में अमेरिका ने एटोमिक विस्फोट किये थे. सत्ता और संसाधनों की जंग ने पूरी दुनिया को बर्बादी और इंसानियत को शर्मनाक कुकृत्यों के हवाले कर दिया था. ऐसे दौर में गाँधीजी ने सत्य और अहिंसा को अपना हथियार बनाया. गांधीजी कहते हैं, ' मुझे दुनिया को कोई नयी चीज नहीं सिखानी है. सत्य और अहिंसा के सिद्धांत हमेशा से हैं.' सही है ....तथागत और महावीर ने दुनिया को सत्य और अहिंसा का ही रास्ता बताया था. हिन्दू धर्म के ग्रन्थ भी इसी सिधान्त की बात करते हैं. लेकिन गाँधीजी के पहले सत्य और अहिंसा को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर दुनिया में कहीं भी जंग नहीं  लड़ी गयी थी. भारत में भी क्रांतिकारियों के अलावा उनके बहुत से साथियों को भी इन हथियारों की बदौलत मुक्कमल कामयाबी मिलने पर यकीन नहीं था. चौरी-चौरा कांड के बाद भारत छोडो आन्दोलन स्थगित करने के फैसले का खुद नेहरु तक ने विरोध किया था. लेकिन गाँधी तो गाँधी थे. अपने शत्रु के लिए भी दिल में कोई मैल नहीं रखना उन जैसा कौन सीख पाया. गाँधीजी ने अपने इन हथियारों के जरिये ना केवल आज़ादी हासिल की बल्कि पूरी दुनिया को एक नया रास्ता भी दिखा दिया. गाँधी जी ने कहा था,'अगर सत्य और अहिंसा से भारत को आज़ादी मिली तो फिर दुनिया के दूसरे गुलाम देश भी इसका अनुसरण करेंगे.' गांधीजी की बात बाद में नेल्सन मंडेला के आन्दोलन की सफलता और ब्रिटिश उपनिवेशों में आज़ादी की बयार से सच साबित हुई. आज भी बहुत से लोग मानते हैं कि गाँधी जी की चली होती तो भारत पाकिस्तान का बंटवारा ना हुआ होता. इश्वर- अल्लाह के नाम पर यों मारकाट ना मची होती. कहते हैं, महान आत्माएं काम पूरा हो जाने के बाद दुनिया में नहीं रहतीं. गाँधीजी भी नहीं रहे. लेकिन सबसे बडे दुःख की बात ये है कि उनकी विरासत सँभालने की जिम्मेदारी उनके बाद किसी ने नहीं उठाई. उन्होंने तो कतई नहीं... जिन्होंने सालों-साल उनके नाम पर राज किया और आज भी उनके नाम का बेजा इस्तेमाल करने में जिन्हें जरा भी शर्म नहीं आती.     

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