भ्रस्टाचार की शिकायतों के चलते काफी हील-हुज्ज़त हुई. लेकिन आखिरकार केन्द्र सरकार ने विश्र्वबैंक की वित्तीय मदद से प्रस्तावित यूपी हेल्थ सिस्टम डेवलपमेण्ट प्रोजेक्ट (यूपीएचएसडीपी)के दूसरे चरण को मंजूरी दे दी है। करीब 800 करोड़ रुपये लागत के इस प्रोजेक्ट पर विश्र्वबैंक पहले ही सैद्धान्तिक सहमति जता चुका है। उम्मीद है कि प्रोजेक्ट अगले वर्ष शुरू हो जाएगा। केन्द्र सरकार की हरी झंडी के साथ ही प्रोजेक्ट की राह पूरी तरह प्रशस्त हो गई। अब जल्द ही विश्र्वबैंक के साथ इसके प्रारूप पर बातचीत शुरू होगी. सैद्धान्तिक तौर पर तय किया जा चुका है कि यूपीएचएसडीपी में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के सिर्फ वही क्षेत्र शामिल किये जाएंगे, जो नेशनल रूरल हेल्थ मिशन द्वारा आच्छादित नहीं हैं। लिहाज़ा एन्सेफलाएटिस उन्मूलन अभियान के चीफ काम्पेनर डॉक्टर ने मांग की है कि राज्य सरकार इस धनराशि में से सौ करोड रुपये खर्च करके एन्सेफलाएटिस उन्मूलन का प्रादेशिक कार्यक्रम 'रीप' लागू करा दे.
डॉक्टर सिंह के मुताबिक रीप कुछ और नहीं बल्कि नीप का ही प्रादेशिक स्वरुप होगा. उनके मुताबिक महज़ सौ करोड रुपयों में टीकाकरण, एरिअल फोग्गिंग, सूअरबाड़ों का नियंत्रण इत्यादि नीप में शामिल सभी प्रमुख बिन्दुओं का अनुपालन कर 'जापानी एन्सेफ्लाएटिस ' पर पूरी तरह से काबू पाया जा सकता है. यही नहीं 'कोक्सेकी' से होने एक्यूट एन्सफ्लाएटिस पर भी सूर्य की विकरित किरणों द्वारा पेयजल को शुद्ध कर काबू पाया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि पिछले साल गोरखपुर पहुंची सी.डी.सी की टीम के सामने भी डॉक्टर सिंह पेयजल शुद्ध करने के अपने फार्मूले का प्रदर्शन कर चुके हैं. सी.डी.सी टीम में शामिल डॉक्टरों का रुख इस फार्मूले को लेकर काफी उत्साहित करने वाला था. उनके मुताबिक भारत जैसे विकासशील देश में ये फार्मूला गरीब तबकों की शुद्ध पेयजल तक पहुँच को आसान बना सकता. जो काम आज़ादी के ६२ वर्षों तक सरकारें नहीं कर पायीं वो सूर्य की किरणों के सही इस्तेमाल से हो सकता है. इसी कांसेप्ट पर मेलबर्न की एक यूनिवरसिटी में में शोध भी चल रहा है. डॉक्टर सिंह के मुताबिक कोई तकनीक विदेश से चल कर आये इससे पहले हमारी सरकार को ये देसी फार्मूला गाँव-गाँव तक लोकप्रिय बना देना चाहिए.
बहरहाल, बात करते हैं विश्व बैंक की उस सहायता की जिसके तहत राज्य सरकार को आठ सौ करोड रुपये मिलने हैं. अबकी इस योजना में नीतिगत सुधारों पर खासा जोर दिये जाने की सम्भावना है। प्रोजेक्ट की तैयारी से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक दूसरे चरण में नर्सिग व पैरा मेडिकल मानव संसाधन विकास, आयुष प्रशिक्षण, प्रोग्राम मैनेजमेण्ट प्रशिक्षण, मानकों के अनुरूप अस्पतालों का सुदृढ़ीकरण, खाद्य एवं औषधि प्रशासन का विकास, उपार्जन प्रणाली में सुधार तथा एक डेटा रिसोर्स सेन्टर जैसे क्षेत्र शामिल किये जाने का प्रस्ताव है। प्रोजेक्ट के संचालन में जहां सम्भव होगा, पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का भी इस्तेमाल किया जाएगा। ज्ञातव्य है कि यूपीएचएसडीपी का 478.08 करोड़ रुपये (109.65 मिलियन यूएस डालर) लागत का पहला चरण जुलाई, 2000 में 28 चुनिन्दा जिलों में शुरू हुआ था, लेकिन निर्धारित अवधि दिसम्बर, 05 तक पूरी धनराशि व्यय न हो पाने के कारण प्रोजेक्ट को दिसम्बर, 08 तक खींचा गया। राज्य सरकार जनवरी, 09 में प्रोजेक्ट का दूसरा चरण शुरू करना चाहती थी। इसके लिए 800 करोड़ रुपये लागत का प्रस्ताव विश्र्वबैंक के सामने पेश भी किया जा चुका था किन्तु इसी बीच केन्द्र व राज्य सरकार की कार्यशैली से नाखुश विश्र्वबैंक ने प्रोजेक्ट के दूसरे चरण को मंजूरी देने से मना कर दिया था। बहरहाल, प्रदेश शासन के अधिकारियों ने हथियार नहीं डाले। उनके प्रयास से गत जनवरी में दिल्ली में केन्द्र सरकार के उच्चाधिकारियों के साथ बैठक आयोजित की गई, जिसमें राज्य सरकार को कई नयी शर्तो व बन्दिशों के साथ नया प्रोजेक्ट तैयार करने का निर्देश दिया गया। अन्तत: अधिकारियों की कवायद रंग लायी और अब केन्द्र सरकार की मंजूरी मिल जाने के बाद अगले वर्ष पूर्वार्द्ध में ही प्रोजेक्ट का दूसरा चरण शुरू हो जाने की उम्मीद नजर आने लगी है।
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