छपाक ने दो दिन पहले गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में रुपयों की कमी के चलते इन्सेफेलाइटिस पीडितों के इलाज में आ रही दिक्कतों का खुलासा किया था. छपाक ने बताया था कि अगर हालत नहीं सुधरी तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है. इस मुद्दे को इन्सेफेलाइटिस उन्मूलन अभियान के चीफ कम्पेनर डॉक्टर आर.एन.सिंह ने भी जोर-शोर से उठाया था. उन्होंने सरकार को आग से ना खेलने की चेतावनी देते हुए अपने आन्दोलन को इलाज़ के स्तर तक ले जाने का ऐलान किया था. उल्लेखनीय है की अभी तक इन्सेफेलाइटिस उन्मूलन अभियान के लोग इलाज़ के स्तर पर सरकार की भूमिका से संतुष्ट रहे हैं. उनकी मांग इन्सेफेलाइटिस उन्मूलन के लिए समग्र योजना 'रास्ट्रीय इन्सेफेलाइटिस उन्मूलन कार्यक्रम-नीप' लागू करने की है. लेकिन अब उनका गुस्सा इलाज़ के मुद्दे पर भी साफ नज़र आने लगा है. डॉक्टर सिंह के शब्दों में,' नीप लागू करने या करवाने में नाकाम राज्य और केंद्र की सरकारें अब इलाज़ के स्तर पर भी नाकाम साबित होने लगी हैं. सरकार चलाने वाले शायद भूल गये हैं कि जनता ही है जो सरकारों को जनती है. सरकार ने लोगों की आँखों में सिर्फ आंसू दिए हैं. कहीं ऐसा ना हो की ये सरकारें जनता के इन्हीं आंसुओं में बह और ढह जाएँ.' स्थानीय मीडिया ने भी इस खबर को संजीदगी से उठाया. नतीजा ये हुआ कि शासन ने दवाओं के लिये ना सिर्फ पचास लाख रुपयों की मंजूरी दे दी है बल्कि दो करोड़ रुपये और देने का मन बनाया है. शासन
इस कार्यवाही के चलते मेडिकल कालेज में भर्ती इन्सेफेलाइटिस मरीजों के लिये दवाओं का संकट फिलहाल टल गया है। इन्सेफेलाइटिस के ढाई सौ से अधिक मरीजों के लिये दवाओं का बजट खत्म होने से परेशान कालेज के प्रधानाचार्य डा. राकेश सक्सेना इसके लिये बुधवार को लखनऊ पहुंचे थे। डा. सक्सेना अपने साथ दवाओं के बजट के लिये दो प्रस्ताव ले गये थे जिसमें एक दो करोड़ का था जबकि दूसरा पचास लाख का था। प्रधानाचार्य डा. सक्सेना के अनुसार शासन ने मामले को गम्भीरता से लेते हुए फिलहाल पचास लाख रुपये की मंजूरी दे दी है और इसको जारी करने की प्रक्रिया चल रही है। उम्मीद है कि दो करोड़ रुपये का प्रस्ताव भी जल्द ही मंजूर हो जायेगा और यह धनराशि मिल जायेगी।
मेडिकल कालेज में भर्ती इन्सेफेलाइटिस के ढाई सौ तथा अन्य मरीजों पर होने वाले खर्च को देखते हुए अब दवाओं का बजट काफी कम बचा है। अप्रैल 2008 में शासन ने मेडिकल कालेज को दवाओं के मद में दो करोड़ रुपये दिये थे। लेकिन अगस्त महीने से कालेज के इन्सेफेलाइटिस समेत अन्य मरीजों की भीड़ बढ़ने से दवाओं, रसायनों व आक्सीजन इत्यादि पर होने वाला खर्च काफी बढ़ गया था। पिछले एक हफ्ते से इन्सेफेलाइटिस के मरीजों की तादाद बढ़ने से यह सिर्फ इन्सेफेलाइटिस मरीजों पर रोजाना दो लाख रुपये का खर्च आने लगा है। नेहरू अस्पताल में भर्ती अन्य मरीजों को मिलाकर यह खर्च रोजाना लगभग ढाई लाख रुपये तक पहुंच गया है।
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रविवार, 4 अक्टूबर 2009
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