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बुधवार, 30 सितंबर 2009

छपाक की क्या जरूरत?

क्या आपने कभी ठहरे हुए पानी में पत्थर मरकर देखा है. 'छपाक'........ यही आवाज आती है ना. फिर पानी में तरंगें उत्पन्न होने लगती हैं. एक हलचल सी मच जाती है. दरअसल हमारे यहाँ सामाजिक ब्यवस्था भी उसी पानी की तरह है जिसमें अगर देर तक हलचल ना हो तो ठहराव आ जाता है. ये ठहराव यदि लम्बा खिंचा तो सडन पैदा हो सकती है. जाहिर है सडन से बचने के लिए बार-बार-लगातार हलचल पैदा करते रहना जरूरी है. जब प्रवाह के सब रास्ते बंद हों तो यही एक तरीका है. पत्थर मारो! 'छपाक-छपाक' की आवाज़, शायद किसी दिन सफाई के लिए जिम्मेदार कानों तक पहुँच जाये और वे, प्रवाह का रास्ता बनाने को, मजबूर हो जायें. ऐसा हुआ तो प्रवाह का रास्ता ही नहीं बनेगा बल्कि पानी की सडन भी रुकेगी. पानी स्वच्छ और निर्मल हो जायेगा.  

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