३१ साल नौकरी करने के बाद वरिष्ठ आई.ए.एस अधिकारी हरमिंदर राज सिंह ने आत्महत्या कर ली। अब आईएएस एसोसिएशन ने उत्तर प्रदेश में आई.ए.एस अधिकारियों पर जरुरत से ज्यादा दबाव कर मुद्दा उठाया है। एसोसिएशन के अध्यछ संजयभूसी रेड्डी खुलकर मीडिया के सामने अपने दिल का दर्द बयां करते हैं। माहौल ग़मगीन है लेकिन सवाल उठाना जरूरी है कि क्या वाकई हरमिंदर राज सिंह पर कोई ऐसा दबाव था जिसके चलते उन्होंने आत्महत्या कर ली। कम ही उम्मीद है कि इस मामले में सही जांच होगी और सच्चाई सामने आएगी। लेकिन इससे भी बढ़कर आज की तारीख में आई.ए.एस एसोसिएशन को इस सवाल का जबाब देना चाहिए कि दबाव चाहे जैसा भी हो क्या किसी आई.ए.एस को आत्महत्या जैसा कदम उठाने पर मजबूर कर सकता है। संजय भूसी रेड्डी की गिनती ख़ुद ईमानदार अधिकारियों में होती है। ये भी सब जानते हैं कि संजय भूसी ज्यादातर समय ऐसे पदों पर रहे जहाँ कोई आई.ए.एस जाना नहीं चाहता। हरमिंदर राज सिंह ने अपनी पूरी नौकरी अच्छे पदों पर गुजारी थी। आत्महत्या के वक्त भी वे प्रमुख सचिव आवास के पद पर थे जिसे बेहतर पद माना जाता है। संजय भूसी रेड्डी बेहतर जानते होंगे कि आई.ए.एस बनने के बाद किसी भी अधिकारी के सामने जिंदगी के बेशुमार रास्ते खुल जाते हैं। आई.ए.एस किसी भी रास्ते पर चले कठिनाइयाँ उसके ब्यक्तिगत जीवन पर ज्यादा असर नहीं डाल सकतीं। यहाँ तक कि लाख चाहकर भी ख़ुद मुख्यमंत्री किसी आई.ए.एस की नौकरी नहीं ले सकता। अधिक से अधिक आई.ए.एस को निलंबित कर सकता है। आई.ए.एस की नौकरी सिर्फ़ राष्ट्रपति की दस्तखत से ही जा सकती है। आई.ए.एस चाहे जिस पद पर रहे, गाड़ी-बंगला-नौकर-चाकर उसे मिलेंगे ही। फ़िर हरमिंदर राज सिंह तो अपनी नौकरी का बड़ा हिस्सा बेहतरीन पदों पर गुजार चुके थे। उन्हें आख़िर किस तरह का दबाव हो सकता है जो उन्हें आत्महत्या पर मजबूर कर दे। बेटा अच्छे पद पर। बेटी शादीशुदा। और पत्नी दिल्ली में अच्छी नौकरी करती हुईं। क्या कमी थी हरमिंदर की जिंदगी में।
लखनऊ में तरह-तरह की बातें हवा में तैर रही हैं। जितने मुंह-उतनी बातें। कोई कहता है क़ि मायावती राज में ईमानदार अधिकारियों की कोई जगह नहीं। हरमिंदर कोर्ट में उन विवादस्पद निर्माण कार्यों की पैरवी करते थे जिनके लिए लगातार मायावती सरकार की किरकिरी हो रही है। लोग कहते हैं कि हो सकता है कि ऐसे ही किसी दबाव को नहीं झेल पाने के चलते हरमिंदर ने अपनी जान ले ली हो।
भाई! क्या हरमिंदरराज सिंह कोई सड़क के आदमी थे कि इतनी मामूली बातो से परेशान होकर उन्होंने आत्महत्या कर ली। आई.ए.एस होने के नाते मसूरी की अकादमी में उन्हें बाकायदा एक साल तक ऐसे ही दबावों से लड़ने की ट्रेंनिंग दी गई होगी। फ़िर फील्ड में भी लंबे अरसे तक उन्हें सिखाया गया होगा। अगर वाकई उन्होंने दबाव में आकर आत्महत्या की तो दरअसल वे बिल्कुल भी सहानभूति के पात्र नहीं हैं। अगर वाकई उनपर दबाव था तो उन्हें सच्चाई के साथ जनता के बीच जाना चाहिए था। वे लड़ सकते थे या फ़िर ख़ुद को अलग-थलग करके शान्ति का जीवन गुजार सकते थे। आत्महत्या करने की नौबत तो कत्तई नहीं थी। अगर एक आई.ऐ.एस आत्महत्या करेगा तो फ़िर इस प्रदेश का किसान, मजदूर और बेरोजगार क्या करेगा। इसीलिए कम से कम हरमिंदर सिंह की मौत के बाद लोक सेवा आयोग को आई.ऐ.एस की परीछा और ट्रेनिंग पर पुनर्विचार जरूर करना चाहिए। अगर न दी जाती हो तो आई.ऐ.एस को नौकरी करने के अलावा बेईमानी से लड़ने और दबावों के सामने नहीं झुकने की भी ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। वरना हरमिंदर सिंह की तरह कमजोर अधिकारी पहले दबेंगे फ़िर डरकर ख़ुद को मौत के हवाले कर देंगे। ये स्थिति देश की प्रशासनिक सेवाओं में जाने वाले हर बन्दे के लिए शर्मनाक है।
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मंगलवार, 1 दिसंबर 2009
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