छपाक
ताकि ठहरे हुए पानी में हलचल शुरू हो
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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010
कठिन डगर
जीवन के हसीन पलों में
साथी मिले बहुत
काँटों से चुभें
पथरीले पथ
हम तन्हा चलें
पहचानो ना पहचानो
क्या फर्क पड़े
कभी ऊंचाई कभी निचाई
तब संसार बने
ऐ वो छलिये
तूने इस जग में
कितने प्रपंच रचे
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