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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

होलिया की हूक

(अजय कुमार सिंह)
भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री दिनेश त्रिवेदी २० फरवरी को गोरखपुर जा रहे हैं. वे वहां एन्सेफलाईटिस से लगातार हो रही मौतों पर अंकुश लगाने का प्रयास करेंगे. उनके पहले केंद्र से वेक्टर बोर्न डिसीज कण्ट्रोल की एक टीम भी जा रही है. केन्द्रीय मंत्री और वेक्टर बोर्न डिसीज़ कण्ट्रोल टीम के गोरखपुर जाने की खबर ने एक बार फिर उम्मीद जगाई है कि शायद पिछले ३० सालों से जारी एन्सेफलाईटिस का कहर अब थम जाएगा. लेकिन इसके साथ ही कुछ लाजमी आशंकाएं भी हैं. जो इस इलाके के कभी भी एन्सेफलाईटिस के चंगुल से बाहर न निकल पाने की कड़वी हकीकत में तब्दील हो सकती हैं. जाहिर है हम सबकी दुआ है कि ये आशंकाएं सच ना साबित हों और राज्यमंत्री के दौरे के कुछ सार्थक नतीजे निकलें. दुर्भाग्य से इस राह में कई रोड़े नज़र आ रहे हैं. चूंकि त्रिवेदी के पहले अम्बूमणिरामदौस भी केन्द्रीय स्वास्थ्यमंत्री के तौर पर इसी काम से गोरखपुर जाकर नाकाम हो चुके हैं. इन स्वास्थ्य मंत्रियों के अलावा राहुल गाँधी, टी.वी.राजेस्वर, अमर सिंह, सलमान खुर्शीद, श्रीप्रकाश जैसवाल, महावीर प्रसाद, मुलायम सिंह यादव आदि भी इस मामले में अपनी ताकत आजमा चुके हैं लेकिन एन्सेफलाईटिस के मच्छर का कुछ नहीं बिगाड़ पाए. फिर भी राज्यमंत्री भारत सरकार  का दौरा इस लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह फरवरी महीने में हो रहा है. एन्सेफलाईटिस की मौतों के सीज़न के तीन महीने पहले. केन्द्रीय मंत्री चाहें तो तीन महीने के इस वक्त का इस्तेमाल एन्सेफलाईटिस के खात्मे के लिए कर सकते हैं. लेकिन आशंका यही है कि मंत्री ऐसा करने के बजाये अपना ध्यान सिर्फ एन्सेफलाईटिस पीडतों के इलाज़ तक सीमित रखेंगे. दरअसल पिछले पांच सालों के दौरान हुआ भी यही है. सलमान खुर्शीद से लेकर राहुल गाँधी तक और राहुल गाँधी से लेकर मुलायम सिंह तक सब बारी-बारी गोरखपुर मेडिकल कॉलेज पहुँच चुके हैं. इनमे से हर एक पहले नेहरु चिकित्सालय के एन्सेफलाईटिस वार्ड में गया, फिर मेडिकल कॉलेज के कांफ्रेन्स हाल या सर्किट हाउस में अधिकारियों के साथ बैठक की. नतीजा क्या निकला. महाशून्य!
सही बात ये है कि मीडिया ने भी इन नेताओं को कभी एन्सेफलाईटिस वार्ड से बाहर की तश्वीर दिखाने की कोशिश नहीं की. वही वार्ड, वही बिस्तर, वैसे ही बदनसीब बच्चे और उनके माँ-बाप. गोरखपुर का कोई स्ट्रिंगर हो या लखनऊ-दिल्ली से आया स्पेशल रिपोर्टर. एन्सेफलाईटिस पर स्टोरी करनी हो तो उसकी शुरुआत भी एन्सेफलाईटिस वार्ड से करेगा और अंत भी वहीँ होगा. रिपोर्टर को सुविधा ये है कि उसे एक ही जगह एंकर+विजुवल+बाईट सब कुछ मिल जाता है. कई उस्ताद भाइयों ने तो इसी वार्ड में आधे-एक घंटे के स्पेशल पैकेज तक तैयार कर दिए हैं. अब जब मीडिया वाले एन्सेफलाईटिस वार्ड से आगे नहीं बढ़ रहे तो भला मंत्री-संतरी को क्या पड़ी है? फोटो तो वहीँ खिंच जाती है. बेबस मरीजों और उनके माँ-बाप के प्रति संवेदना का दिखावा भी हो जाता है. बस.... 'काम ख़त्म पैसा हज़म.'
तो क्या राज्यमंत्री भी एन्सेफलाईटिस  वार्ड में फोटो खिंचवा कर लौट जायेंगे? या फिर वाकई उनकी नीयत इस बार कुछ कर गुजरने की है. वे कर तो सकते हैं. क्योंकि अभी एन्सेफलाईटिस का सीज़न शुरू होने में तीन महीने का वक्त बाकी है. इस बीच गैर सरकारी मशीनरी ने एन्सेफलाईटिस वार्ड के बाहर ऐसा काफी कुछ किया है जिसे सरकार को जानना चाहिए. होलिया एक प्रतीक बनकर उभरा है. एक जनवरी को हम सब वहां गए थे. राज्यमंत्री  को भी जाना चाहिए. होलिया का कोई भी बच्चा उन्हें बता देगा कि एन्सेफलाईटिस का समाधान क्या है. जो हल शर्तिया तौर पर उनके लालबुझकड़ अधिकारियों की बैठक में नहीं निकलने वाला वो हल होलिया में जरूर निकल आएगा. राज्यमंत्री वहां जाते तो शायद गाँव-गाँव में एन्सेफलाईटिस उन्मूलन की बयार बहने लगती. शायद सरकार को रास्ट्रीय या प्रादेशिक स्तर पर एन्सेफलाईटिस उन्मूलन कार्यक्रम लागू करने की सदबुद्धि आ जाती और शायद अगले तीन महीने में हम सेकड़ों और बच्चों को मौत की गोद में ना जाने देने की व्यवस्था कर पाते.
 एन्सेफलाईटिस उन्मूलन अभियान के चीफ कम्पेनर डाक्टर आर.एन.सिंह ने आज राज्यमंत्री को एक पत्र भेजा है. इस पत्र में डाक्टर सिंह ने नीप से कम किसी भी तरीके से एन्सेफलाईटिस उन्मूलन की असम्भाविता पर प्रकाश डाला है. डाक्टर सिंह पूर्वांचल में पिछले पॉँच साल से एन्सेफलाईटिस उन्मूलन का अभियान चला रहे हैं. उन्होंने और उनके लोगों ने हजारों चिठियाँ खून से लिखकर सरकार को भेजी हैं. ताकि वो नीप लागू करे. लेकिन एक जनवरी को जैसे ही उन्होंने होलिया में काम शुरू किया चार जनवरी को सरकार ने पहली बार उन्हें जबाब भेजा. इस जबाब में नीप के दसों  सूत्रों को सही मानते हुए भी इसके लिए किसी दीर्घकालिक योजना विशेष को गैरजरूरी बताया गया है. सरकार कहती है कि नीप के दसों सूत्र को रास्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एन.वी.बी.डी.सी.पी ) द्वारा ही देखा जा रहा है. यानी जिस बिमारी ने पिछले ३१ साल में ५० हज़ार से ज्यादा बच्चों को अपना शिकार बनाया हो, सरकार नहीं मानती कि उससे निपटने के लिए किसी अलग योजना की जरूरत है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि सन २००८ में एन्सेफलाईटिस उन्मूलन अभियान के चीफ कैमपेनर डाक्टर आर.एन.सिंह के सुझाव पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यछ डाक्टर रीता बहुगुणा जोशी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को साफ-साफ शब्दों में लिखकर नीप लागू करने की जरूरत बताई थी. मिशन २०१२ का दम भर रही कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपनी अगुआ की इस बात को कैसे नज़रंदाज़ कर दिया ये अपने आप में यछ प्रश्न है. त्रिवेदी उसी मंत्रालय के मंत्री हैं जिसने डाक्टर सिंह को ऐसा गैरजिम्मेदाराना जबाब भेजा है. डाक्टर सिंह के मुताबिक अगर रास्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एन.वी.बी.डी.सी.पी ) इतना ही कारगर होता तो बिगत चार सालों से हर साल एक ही छत के नीचे (नेहरु चिकित्सालय) में मौतों का ग्राफ  दस से बीस प्रतिशत बढ़ता ही नहीं जाता. कुछ दिन पहले ही लोकसभा में गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ ने एन्सेफलाईटिस पर सवाल उठाया था. तब इन्हीं मंत्री ने एन्सेफलाईटिस पीड़ितों से संवेदना जताते हुए कहा था कि ," वी आर ड्यूटी बाउंड टू इरेडिकेट इट."  डाक्टर सिंह सवाल उठाते हैं कि जब सरकार ईरेडिकेशन प्रोग्राम लागू करने पर सहमत ही नहीं है तो फिर आखिर मंत्रीजी अपनी ड्यूटी निभाएंगे कैसे?

1 टिप्पणी:

  1. ;Holiya' Was an experiment with a very positive result of "No Deaths and No Disability from that village for two year .Work by E.E.M. is not going on for last two years and village has come as it was previously,but it gave a Mirror Image to Gov ts to adopt for Encephalitis affected areas,rather whole country.It was called as 'DANDEE MARCH' of Eastern U.P. by many as it was a positive opposition of Govt policies based on Gandhian Philosophy.
    Dr R N Singh,Encephalitis Erad Movement.
    Gorakhpur..

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